कोइ भी विद्यालय किसी भी सभ्यता के विकसित होने का केन्द्रस्थल है। इसका संचालन एक निष्चित उद्देष्य के जरूरतों के अनुसार होता है। विभिन्न अवसरों पर देष के नामी-गिरामी और अभिवंचित विद्यालयों में कमोंवेष रोजगारपरक षिक्षा की स्थिति एक जैसी है। कक्षा दषवीं और बारहवीं की परिक्षा में ऊँचें अंक प्राप्त करने के पष्चात भी ये नौजवान चंद रूपये कमाने में असक्षम रहतें हैं,या हम यह कहें कि ऐसी मनोदषा विकसित हो गयी है कि जब तक हमें सुविधानुसार नौकरी प्राप्त नहीं होगी, हम अपने माता-पिता पर ही आश्रित । ऐसा देखा गया है किसी विद्यालय में बच्चों का दाखिला नहीं होना अभिभावकों के चिन्ता का कारण होता है। वहीं विद्यालय की परिक्षाओं को पास करने के बाद उसे उचित रोजगाार न मिलना भी बड़ी चिन्ता का कारण बन जाता है।यदि हम इसका विष्लेशण करें तो पायेगें कि इसका निदान हमारी षिक्षा व्यवस्था में कुछ परिवर्तन करके सम्भव हो सकता है। समय एवं परिस्थिति के अनुसार, स्थान के अनुसार बच्चों में रोजगार के प्रति सकारात्मक सोच बढ़नी चाहिए। विद्यालयों में कृशि, वानिकी एवं कुटिर उद्योंगों से सम्बन्धित प्रायोगिक वर्कषाॅप बनाये जाने चाहिए। इसी से हम अपने युवओं के छोटे-छोटे कायों को अच्छे ढंग से निश्पादित करने की ट्ेनिग देकर बड़े कार्यो की चुनौती को सहजता से स्वीकार करने के लिए सक्षम बना सकते हैं।
Ashutosh Kumar Mairh
Principal